पाठ: 9 – कबीर: अरे इन दोहन रह ना पाई ; बालम आवो हमारे गेह रे प्रश्न और उत्तर Class 11

NCERT Solutions for Class 11 Hindi Kshitij chapter 9 Kabir : Arey in dohan rah na paai ;  Balam aavo hamare geh re Question and Answers

प्रश्न – अभ्यास

1. ‘अरे इन दोहुन राह न पाई’ से कबीर का क्या आशय है और वे किस राह की बात कर रहे हैं?

Answer:

‘अरे इन दोहुन राइ न पाई’ से कबीर का संदेश है कि हिंदू और मुस्लिम समुदाय ने धर्म की अच्छी प्रक्रिया को नहीं अपनाया है और वे धार्मिक विवादों में फंसे रहते हैं। कबीर ने इस संदेश के साथ ही साझा किया कि सच्चे भाग्य की प्राप्ति के लिए उन्हें एक उचित मार्ग पर चलना चाहिए।

कबीर ने इस मार्ग को संकेतित किया है, जिसमें मानव ईश्वर के पास पहुँच सकता है। यह मार्ग आपसी सद्भावना, सामंजस्य, और सदाचार की ओर बढ़ता है, और इसका अनुसरण करके मानव अपने आत्मिक उन्नति की ओर बढ़ सकता है।

कबीर के उपदेश से हमें यह सिखने को मिलता है कि धार्मिकता का अर्थ नहीं है कि हम अपने धर्म को बढ़ावा देने के लिए दूसरों के खिलाफ हों, बल्कि यह अर्थ है कि हम सभी मानव एक साथ शांति, सद्भावना, और सामंजस्य के साथ रह सकते हैं और ईश्वर की खोज में एक साथ आगे बढ़ सकते हैं।

2. इस देश में अनेक धर्म, जाति, मजहब और संप्रदाय के लोग रहते थे किंतु कबीर हिंदू और मुसलमान की ही बात क्यों करते हैं?

Answer:

इस देश में अनेक धर्म, जाति, मजहब, और संप्रदायों के लोग रहते हैं, लेकिन कबीर ने विशेष रूप से हिंदू और मुसलमान के बारे में बात की है, क्योंकि इन दो धर्मों का देश में महत्वपूर्ण स्थान है। यहां तक ​​कि इन दोनों धर्मों के प्रति लोगों की आस्था और अनुष्ठान का भी विशेष महत्व है।

कबीर ने इस बात पर विचार किया कि हिंदू और मुसलमान धर्म के बीच ज्यादातर समाज में मौजूद रूढ़ियाँ, अंधविश्वास, और अनिवार्यता की बुनाई गई हैं। वे इस बात को उठाते हैं कि यदि हम इन भ्रांतियों से मुक्त होकर साच्चे धार्मिक तत्वों की ओर बढ़ें, तो हम सभी मिलकर एक बेहतर समाज का निर्माण कर सकते हैं। वे यहां तक ​​कि हम सभी को धर्म के नाम पर आपसी सद्भावना और सामंजस्य के लिए एक साथ आना चाहिए और इन भ्रांतियों से मुक्त होकर सच्चे धार्मिक मार्ग पर चलना चाहिए।

3. ‘हिंदुन की हिंदुवाई देखी तुरकन की तुरकाई’ के माध्यम से कबीर क्या कहना चाहते वे उनकी किन विशेषताओं की बात करते हैं?

Answer:

‘हिंदुन की हिंदुवाई देखी, तुरकन की तुरवाई की तरुकाई’ इस उक्ति के माध्यम से कबीर यह संदेश देना चाहते हैं कि दोनों धर्मों में व्याप्त कुरीतियों को देखकर भी लोग अपने आप को श्रेष्ठ मानते हैं, जबकि वास्तविकता यह है कि इन दोनों समुदायों में छुआछूत और भेदभाव बरकरार है।

कबीर हिन्दुओं के लिए यह कह रहे हैं कि वे अपने को श्रेष्ठ मानकर दूसरे जातियों और समुदायों को अपने साथ बराबरी का दर्जा नहीं देते हैं, और इसका कारण है छुआछूत की भावना। वे यह भी उद्धरण देते हैं कि मुसलमान मुर्गों का मांस खाते हैं और व्यापारिक विवाह करके जातिवाद को पलायन करते हैं। कबीर इन बातों के माध्यम से दोनों धर्मों के लोगों की दोहरी मानसिकता पर व्यंग्य करते हैं और छुआछूत और भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाते हैं।

4. ‘कौन राह है जाई’ का प्रश्न कबीर के सामने भी था। क्या इस तरह का प्रश्न आज समाज में मौजूद है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।

Answer:

“कौन राह है जाई?” यह प्रश्न कबीर के सामने न तो पहले था और न ही आज के समाज में नया है। आज भी लोग कुरीतियों और आडंबरों के जाल में फंसकर सही मार्ग को पहचानने में समस्या रहती है। वे बाहरी दिखावे के प्रति झुक कर सत्य के मार्ग की ओर नहीं बढ़ पा रहे हैं। 

उदाहरण के तौर पर, आज भी लोग सच्चे ईश्वर में विश्वास करने की बजाय विभिन्न धर्मों और कर्मों में विश्वास करते हैं।

5. ‘बालम आवो हमारे गेह रे’ में कवि किसका आह्वान कर रहा है और क्यों?

Answer:

‘’बालम आवो हमारे गेह रे’ (“आओ, बालम, हमारे घर“) आपकी आत्मा की पुकार है,” इस पंक्ति में कवि प्रियतम रूपी परमात्मा के प्रति अपनी अद्वितीय भावनाओं का इजहार करते हैं, क्योंकि उनके बिना उनकी दुखभरी आत्मा बेहद उबाड़ रही है। उनके हृदय में विरह की आग जल रही है, जो परमात्मा के संग मिलने के बाद ही शांत हो सकेगी।

6. ‘अन्न न भावै नींद न आवै’ का क्या कारण है? ऐसी स्थिति क्यों हो गई है?

Answer:

‘अन्न न भावै नींद न आवै’ का कारण परमात्मा से वियोग है। इस दुखद स्थिति का कारण यह है कि उनके मन में परमात्मा के प्रति एक गहरा प्यार है और उनकी अत्यंत आकांक्षा है कि वे उससे मिलें।

7. ‘कामिन को है बालम प्यारा, ज्यों प्यासे को नीर रे’ से कवि का क्या आशय है? स्पष्ट कीजिए।

Answer:

‘कामिन को है बालम प्यारा, वैसा ही प्यासे को नीर,’ इस पंक्ति से कवि का आशय है कि पतिपरमेश्वर पत्नी के लिए उतना ही महत्वपूर्ण होता है, जितना कि प्यासे के लिए पानी। जैसे प्यासे को पानी की आकांक्षा होती है, उसी प्रकार से, कबीर की आत्मा भी परमात्मा से मिलने के लिए अत्यंत बेकरार होती है।

8. कबीर निर्गुण संत परंपरा के कवि हैं और यह पद (बालम आवो हमारे गेह रे) साकार प्रेम की ओर संकेत करता है। इस संबंध में आप अपने विचार लिखिए। 

Answer:

कबीर एक निर्गुण संत परंपरा के कवि है, जिन्होंने निराकार प्रेम (ईश्वर के प्रति) को महत्ता दी है। उनकी कविता में साकार प्रेम का संकेत हो सकता है, लेकिन इसके मूल में वास्तविक अर्थ में निराकार प्रेम ही है, अर्थात् प्रत्यक्ष रूप में ईश्वर की चर्चा का द्वार है, लेकिन वास्तव में वे निर्गुण ब्रह्म के गुणगान का ही सर्वोच्च माध्यम हैं।

9. उदाहरण देते हुए दोनों पदों का भाव सौंदर्य और शिल्प सौंदर्य लिखिए।

Answer:

1. ‘अरे इन दोउन राह न पाई….’ पद का काव्य-सौंदर्य

भाव-सौंदर्य – कबीर इस पद में हिंदू और मुस्लिम समाज के बीच फैली कुरीतियों का सशक्त भाषा में विरोध करते हैं। वे हिंदू समाज की उस अवस्था की आलोचना करते हैं, जिसमें वे अपने आप को श्रेष्ठ मानते हैं, लेकिन उनकी छोटी जाति के लोगों को छुआ पानी तक नहीं पीने देते और दूसरी ओर पतित वेश्याओं के पैरों पर गिर जाते हैं। कबीर ने इस भ्रष्ट अवस्था को कड़े शब्दों में निन्दा की है और उन्होंने उन लोगों को सख्ती से आलोचना की है।

कबीर ने वाकई समाज में फैली कुरीतियों के खिलाफ बेहद उच्च भावनाओं के साथ आवाज उठाई है। उन्होंने मांसाहार को भी कड़ी निंदा की है, जैसे कि उन्होंने मुसलमान धर्मगुरूओं को कोसा है। उन्होंने अपने कुल में विवाह करने की मुसलमानों की प्रथा की भी निन्दा की है। साथ ही, उन्होंने सामूहिक मांसभक्षण को भी आलोचना की है। कबीर ने छुआछूत, वेश्यागमन, मांसाहार, कौटुंबिक विवाह, और अन्य सामाजिक कुरीतियों पर बर्दाश्त नहीं किया और समाज के सुधार की प्रबल भावना को उनकी रचनाओं में प्रकट किया है।

शिल्प-सौंदर्य-

1. इस पद में कबीर ने ‘सघुक्कड़ी भाषा का प्रयोग किया है।

2. शब्दों के सटीक चयन ने पद के कथ्य को उचित प्रहारात्मक रूप प्रदान किया है। 

3. व्यंजना शब्द-शक्ति का कवि ने सुंदर प्रयोग किया है।

4. अनुप्रास अंलकार की छटा सर्वत्र दर्शनीय हैं, जैसे मुर्गा, मुर्गी, बेटी व्याहै, धोय-धाय, सब सखियाँ, कहैं कबीर आदि । 

5. ‘हिंदुन की हिंदुवाई’ तथा ‘तुरकन की तुरकाई’ पदावली का लालित्य दर्शनीय हैं।

6. पूरे पद में नाद-सौंदर्य विद्यमान हैं।

7. ‘पद’ छंद का प्रयोग है।

2. ‘बालम, आवो हमारे गेह रे…..’ पद का काव्य सौंदर्य

भाव-सौंदर्य – इस पद में, कबीर ने अपनी भक्ति भावना की उच्च अद्वितीयता का प्रतिष्ठापन किया है। पद में, ‘ईश्वर’ को ‘पति’ के रूप में प्रस्तुत करते हुए ‘पत्नी’ जैसी ‘जीवात्मा’ की विरह-वेदना को अत्यंत गहराई से अनुभव किया गया है। यहाँ, कबीर ने लौकिक दृष्टांतों का उपयोग करके पारलौकिक प्रेम के आत्मा को बयान किया है। वे दर्शाते हैं कि बिना ईश्वर के दर्शन के, आत्मा की स्थिति कितनी दुखद हो सकती है, और इसे अत्यंत विशेषता से प्रस्तुत किया है।

“हृदय से जुड़े बिना, प्रेम की पुष्टि कैसे हो सकती है,” इस सवाल को कबीर ने उठाया है, और साथ ही, वे ब्रह्म को भी यहां एक प्रकार की प्रोत्साहना देते हैं, संवाद करते हैं, और आत्मा को भगवान के पास आने के लिए स्वागत करते हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया है कि जैसे कि प्यासे को पानी की खोज होती है और स्त्री को पति के बिना शांति नहीं मिलती, वैसे ही जीवात्मा को भी परमात्मा के बिना शांति नहीं मिल सकती। इस पद में, कवीर ने आत्मा को एक विरहिणी के रूप में चित्रित किया है, जिसमें परमात्मा के प्रेम में एकनिष्ठता और समर्पण भाव की महत्ता को प्रकट किया है।

शिल्प सौंदर्य-

1. इस पद में कबीर ने सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग किया है, जिसमें विभिन्न स्थानों के आंचलिक शब्द प्रयुक्त हुए हैं ।

2. विरह-वर्णन की गंभीरता व्यक्त करने हेतु कवि ने उपयुक्त शब्दों का चयन किया है। 3. श्रृंगार रस के वियोग पक्ष का सुंदर चित्रण हुआ है ।

4. अनुप्रास अलंकार की छठा सर्वत्र दर्शनीय है-जैसे- दुखिया देह, ‘कोई कहै,’ ‘लागज लाज,’ ‘घरै न धीर,’ ‘जिव जाय’।

5. कबीर ने इस पद में उत्प्रेक्षा अलंकार का भी प्रयोग किया है, जैसे –’ज्यों प्यासे को नीर रे’ । 

6. ‘पद’ छंद का प्रयोग है।

7. पूरे पद में नाद-सौंदर्य सराहनीय है।

योग्यता – विस्तार

1. कबीर तथा अन्य निर्गुण संतों के बारे में जानकारी प्राप्त कीजिए।

Answer:

1. कबीर- (कबीर के बारे में विस्तृत जानकारी इस पाठ में दी गईं है। छात्र उसका अध्ययन करें)। 

वर्व्य- विषय की दृष्टि से कबीर के काव्य को तीन भागों में बाँटा जा सकता है। 

1. रहस्यवाद संबंधी रचनाएँ

2. समाज सुधार संबंधी रचनाएँ, यथा- ब्राह्म आडम्बर रूढ़िवादिता, अस्पृश्यता, अंधविश्वास, सांप्रदायिकता आदि कुरीतियों का खंडर करती रचनाएँ।

3. गुरूमहिमा, सत्संगति, सदाचार, आत्मिक शुचिंता, इन्द्रिय-निग्रह आदि संबंधी रचनाएँ ।

2. धर्मदास- धर्मदास का जन्म सन् 1481 में हुआ था। वे कबीर के प्रमुख शिष्य थे और बाँधोगढ़ के धनी व्यक्ति थे। पहले, वे सगुण भक्ति का पालन करते थे, लेकिन फिर उन्होंने अपनी सारी संपत्ति को दान करके सम्पूर्ण परिवार के साथ कबीर पंथ में शामिल हो गए। धर्मदास ने ही कबीर की रचनाओं का संग्रह किया था और उन्होंने स्वयं भी अनेक ग्रंथों का निर्माण किया। उनका ‘सुखिनिधान’ नामक ग्रंथ सबसे प्रसिद्ध है। सन् 1543 में उनका देहावसान हो गया।

3. रैदास- रैदास का समय 15 वीं शताब्दी में माना जाता है, और वे स्वामी रामानंद के शिष्य माने जाते हैं। रैदास के पदों में कुछ स्थानों पर उल्लेख होने के कारण ऐसा माना जाता है कि वे जाति से हरिजन थे। वे काशी के आस-पास के क्षेत्र के निवासी थे और यह भी कहा जाता है कि मीराबाई ने उन्हें अपना गुरू बनाया था।

रैदास के पद ‘गुरूग्रंथ साहब’ में संकलित हैं, और उनके कुछ पद ‘सतबानी’ में भी संग्रहीत हैं। रैदास ने अपने काव्य में दास-भाव की भक्ति की है, और वे खुद को दीन-हीन बताकर ईश्वर से कृपा करने का अनुरोध करते हैं, जो उनके काव्य की प्रमुख विशेषता है।

संत रैदास का प्रसिद्ध पद है।

‘प्रभु जी तुम चंदन हम पानी…..।’

रैदास की रचनाओं के दो संग्रह तैयार किए गए हैं।

1. रैदास की बानी

2. रैदास के पद।

4. गुरूनानक- गुरूनानक का जन्म सन् 1469 में लाहौर के तलवंडी नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता श्री कालूचन्द खत्री ने इन्हें व्यवसाय में लगाना चाहा, परंतु इनका मन भक्ति में रमने लगा। इन्होंने धार्मिक कर्मकांड और वर्गाश्रम व्यवस्था का विरोध करते हुए निर्गुण भक्ति की उपासना की। गुरुग्रंथ साहब के अंतर्गत ‘महल’ प्रकरण में गुरूनानक की बानी संकलित हैं। गुरूनानक की रचनाएँ हैं-जपुजी, आसादीवार, रहिरास और सोलिया।

5. सुंदरदास- सुंदरदास का जन्म सन् 1596 में धौसा (जयपुर) में एक वणिक परिवार में हुआ था। वे केवल 6 वर्ष की अल्पआयू में ही दादू के शिष्य बन गए थे। जब वे 10 वर्ष की आयु में थे, तो काशी चले गए और फिर उन्होंने बाद में फतेहपुर (राजस्थान) जाना। सन् 1689 में उनका देहावसान हो गया।

सुंदरदास निर्गुण संत कवियों में सर्वाधिक सुशिक्षित थे और उन्होंने कलात्मक काव्य का विकास किया। उन्होंने निर्गुण-भक्ति परक रचनाओं के साथ ही लोकधर्म और लोकमर्यादा संबंधी काव्य की भी रचना की है। सुंदरदास का सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ है ‘सुंदर विलास’।

2. कबीर के पद लोकगीत और शास्त्रीय परंपरा में समान रूप से लोकप्रिय हैं और गाए जाते हैं। कुछ प्रमुख गायकों के नाम यहाँ दिए जा रहे हैं। इनके कैसेट्स अपने विद्यालय में मँगवाकर सुनिए और सुनाइए – 

• कुमार गंधर्व 

• प्रह्लाद सिंह टिप्पणियाँ

• भारती बंधु

Answer:

विद्यार्थी अपने अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

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