Nana Saheb ki putri devi maina ko bhasm kar diya Summary Class 9
“नाना साहेब की पुत्री देवी मैना को भस्म कर दिया गया” पाठ में लेखिका चपला देवी ने बताया है कि सन 1857 के विद्रोह में जब असफल धंधुपंत नाना साहब कानपुर से भागने लगे, तो वह जल्द-बाजी में अपनी पुत्री ‘मैना’ को साथ नहीं ले जा पाए। अंग्रेजों ने उस निरपराध देवी को बड़ी ही क्रूरता से जला डाला। यह दृश्य किसी कठोर हृदय को भी भावुक बना देता है।
अब अंग्रेजों की सेना नाना साहब का राजमहल लूटने कानपुर से बिठूर जा पहुंची और जब उन्होंने सब लूट लिया। तब उन्होंने उस राज महल को तोप के गोले से गिराने का फैसला लिया। तभी वहां बरामदे में एक अत्यंत सुंदर बालिका आ जाती है। वह लड़की सेनापति से महल की रक्षा के लिए प्रार्थना करती है और उस महल पर गोले ना दागने के लिए भी कहती है। वह छोटी सी बच्ची तर्क देते हुए कहती है कि इस स्थिर मकान का क्या दोष है, दोषी तो वह लोग हैं जिन्होंने शस्त्र उठाए थे।
फिर वह अपना परिचय बताते हुए कहती है कि मैं जानती हूं कि आप सेनापति जनरल ‘हे’ हैं और आपकी बेटी ‘मेरी’ और मैं बहुत अच्छे मित्र थे। और आप भी मुझे अपनी बेटी के समान ही प्यार करते थे। सेनापति यह जानकर कि वह छोटी लड़की नाना साहब की पुत्री ‘मैना’ है उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ। तब लेखिका बताती हैं कि वह सैनिक मैना को पहचान लेता है लेकिन एक सरकारी नौकरी होने की वजह से वह आदेश को अनदेखा नहीं कर सकता था।
लेकिन फिर भी वह उसकी रक्षा का प्रयत्न करने को कहता है, तभी वहां प्रधान सेनापति आकर बोलता है कि अभी तक यह राजमहल क्यों नहीं गिराया गया है? तब सेनापति प्रधान सेनापति से पूछता है कि इस महल को बचाने का कोई उपाय है। किंतु प्रधान सेनापति इससे संभव नहीं मानता। सेनापति दुखी होकर वहां से चले जाता है।
अब अंग्रेज सिपाही ने महल को चारों ओर से घेर लिया और मैना को ढूंढने लगे, परंतु उन्हें वह कहीं नहीं मिलती है। उसी दिन शाम के समय लॉर्ड कैनिंग का एक तार आया, जिसमें यह लिखा था कि नाना साहब से संबंधित एक भी चिन्ह नहीं बचना चाहिए।
लेखिका के अनुसार लंदन से तार के आते ही उसी समय क्रूर प्रधान सेनापति की आज्ञा से नाना साहब का राजमहल घंटे भर में चूर-चूर कर दिया जाता है।
फिर उसी समय लंदन के प्रसिद्ध “टाइम्स” पत्र में छापा गया कि “बहुत दुख की बात है नाना साहब को अभी तक नहीं पकड़ा गया है।” सभी अंग्रेज बहुत क्रोधित है। वह सब अंग्रेजों के हत्याकांड का बदला लेंगे। तब सेनापति ‘हे’ ने नाना साहब की बेटी “मैना” पर दया भाव दिखाने का प्रस्ताव सभा में लिख कर दिया।
तब सेनापति ‘हे’ पर वृद्धावस्था में एक छोटी सुंदर बालिका के सौंदर्य में मोहित होकर अपना कर्तव्य भूलने का आरोप लगाया गया। सभा के मत के अनुसार नाना साहेब के पुत्र, पुत्री या अन्य कोई संबंधी मिले तो उसे वही खत्म कर देना चाहिए और इतना ही नहीं नाना की पुत्री “मैना” को सेनापति ‘हे’ के सामने फांसी पर लटका देना चाहिए।
आगे लेखिका चपला देवी बताती हैं कि सन 1857 के सितंबर महीने की आधी रात के समय नाना साहब की पुत्री “मैना” उस टूटे हुए राजमहल के ढेर के ऊपर बैठ कर रो रही थी। उसकी रोने की आवाज सुनकर सैनिक वहां आते हैं और मैना से प्रश्न करने लगते हैं, लेकिन कोई जवाब नहीं मिलता। अब वह किसी से नहीं डर रही थी। जनरल अउटरम उसे पहचानते ही कैद करना चाहते हैं। लेकिन मैना जी भर कर रोने के लिए उनसे कुछ समय मांगती है।
परंतु कठोर हृदय जनरल ने उसकी आखिरी इच्छा भी नहीं सुनी और उसे कानपुर के किले में कैद कर दिया। एक पत्र में यह छापा गया कि कानपुर किले के अग्निकांड में नाना साहब की इकलौती पुत्री “मैना” को जलाकर मार डाला गया। सभी ने उस छोटी सुंदर बालिका को देवी समझकर प्रणाम किया।