प्लेट विवृतनिक का सिद्धांत: एक सिद्धांत जो भौतिक आकृतियों के निर्माण की व्याखया करने की कोशिश करता है। प्लेट विवर्तनिक के सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी की ऊपरी परपटी सात बड़ी एवम् कुछ छोटी प्लेटो से बनी है। हिमालय को नवीन वलित पर्वत कहा जाता है। हिमालय की लंबाई 2400 किलोमिटर है तथा चौड़ाई कश्मीर में 400 किलोमीटर तथा अरुणाचल प्रदेश में 150 किलोमिटर है।
भू- पृष्ट की मुख्य प्लेटें:-
- यूरेशियन प्लेट
- इडिंयन प्लेट
- अफ़्रीकन प्लेट
- उत्तरी अमेरिकन प्लेट
- दक्षिण अमेरकिन प्लेट
- अंटाकर्तिक प्लेट
- प्रशांत महासागरीय प्लेट
प्रायद्वीपीय पठार की विशेषताएँ:-
- यह प्राचीनतम भू-भाग गोंडवाना भूमि का एक मेज़ की आकृति वाला स्थल है जो आग्नेय, पुराने क्रिस्टलये तथा रूपांतरित शैलों सव बना हैं।
- इस पठार का एक भाग उत्तर पूर्व में भी देखा जा सकता है इसे मेघालय तथा कार्बी आंगलौंग पठार भी कहते हैं।
- दक्षिणी पठार के पश्चिमी तथा पूर्वी किनारे क्रमशः पश्चिमी घाट तथा पूर्वी घाट कहलाते है।
देशान्तरी विस्तार के अनुसार हिमालय को तीन श्रेणियों में बांटा जाता हैं:
(क) हिमाद्रि
(ख) हिमाचल
(ग) शिवालिक
हिमाद्री की विशेषताएँ:-
- यह सब से अधिक सतत श्रृंखला जिसमें 6000 मीटर की औसत ऊंचाई वाले सर्वाधिक ऊँचे शिखर हैं।
- हिमालय के इस भाग का क्रोड़ ग्रेनाइट का बना हुआ है।
- यह श्रृंखला सदेव बर्फ़ से ढकी रहती है तथा इससे बहुत से हिमानियो का प्रवाह होता है।
हिमाचल की विशेषताएँ:-
- इन श्रृंखलाओं का निर्माण मुख्यतः अत्यधिक संपीड़ित तथा परिवर्तित शैलों से हुआ है।
- इनकी ऊँचाई 3700 मीटर से 4500 मीटर के बीच है तथा चौडाई 50 किलोमीटर है, पीर पंजाल श्रृंखला सबसे लंबी है तथा धोलधर एंड महासागर श्रृंखलाएं भी महत्त्वपूर्ण है।
- कश्मीर की घाटी तथा हिमाचल की काँगड़ा तथा कुल्लू की घाटियाँ इसी में स्थित है।
शिवालिक की विशेषताएँ:-
- इस की चौड़ाई 10 से 50 किलोमीटर तथा ऊँचाई 900 से 1100 मीटर से बीच है।
- यह श्रृंखलाएँ उत्तर में स्थित मुख्य हिमालय की श्रृंखलाओं से नदियाँ के द्वारा लायी गई असंपीड़ित अवसादों से बनी है।
- शिवालिक के बीच में स्थित यह लंबवत घाटी तो दून के नाम से जाना जाता है। जैसे देहरादून कोतलिदून तथा पाटलीदून।
पूर्वांचल पटकाई, नागा, मिजो तथा मणिपुर की पहाड़ियों से मिलकर बनता है। अनाई मुड़ी पश्चिम घाट की सबसे ऊंची शिखर है जिसकी ऊंचाई 2695 मीटर है जबकि महेंद्रगिरी पूर्वी घाट का सबसे ऊंचा शिकार है जिसकी ऊंचाई 1501 मीटर है। प्रायद्वीपीय पठार का वह क्षेत्र जहां काली मृदा पाई जाती है वह दक्कन ट्रैप कहलाता हैं।लक्षद्वीप का नाम 1973 में पड़ा इससे पहले इनको लाकदीव, मीनिकाए और ऐमिनदीव कहा जाता था।
भारत में हिमालय के ऊँचे शिखर के नाम और उनकी ऊँचाई:-
- कंचनजुंगा (8598 मीटर)
- नंगा पर्वत(8126 मीटर)
- कोमेट (7756 मीटर)
- नामचा बरुआ (7756 मीटर)
पश्चिमी घाट :-
- पश्चिमी घाट पश्चिमी तट के सामानांतर सतत श्रृंखला है जिसे केवल दर्रों से पार ही किया जाता है।
- पश्चिमी घाट की ऊँचाई 900 से 1600 मीटर है, पश्चिमी घाट की ऊँचाई उत्तर से दक्षिण की बदली जाती है।
- अनाई मुड़ी इसका सबसे ऊँचा शिखर है।
पूर्वी घाट:-
- पूर्वी घाट पूर्वी तट के सामानांतर असतत श्रृंखला है जिसे बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियों ने काट दिया है।
- पूर्वी घाट की औसत ऊँचाई 600 मीटर है।
- महेंद्गिरी इसका सबसे ऊँचा शिखर है।
दोआब का अर्थ है दो नदियों के बीच की भूमि। चिल्का झील भारत में खारे पानी की सबसे बड़ी झील है, यह ओड़िशा में स्थित हैं।
डेल्टा नदी के सागर में मिलने से पहले उसके प्रवाह में हल्का सा अवरोध आने पर मलबे का निक्षेपण होने लगता है।इससे अवसाद जमा होकर एक त्रिभुजाकार रूप ले लेते है।जिसे डेल्टा कहते है।
हिमाचल में पाए जाने वाले प्रमुख दर्रे: काराकोरम दर्रा , रोहतांग दर्रा, वुजिर्ल दर्रा, जोजिला दर्रा, पीरपंजाल दर्रा, शिपकिला दर्रा ।
भारत को प्रायद्वीप इसलिए कहा जाता है क्योंकि भारत के तीन ओर समुद्र है और उत्तर में हिमालय पर्वत है। तीन ओर से समुद्र से घिरा होने के कारण इसकी तटीय रेखा बहुत लम्बी है पश्चिमी तट और पूर्वी तट। पूर्वी तट बहुत विस्तृत हैं। क्योंकि बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियों जैसे कृष्णा, कावेरी, गोदावरी, महानदी इस भाग को चौड़ा कर देती है और उपजाऊ भी बना देती है।
पश्चिमी तटीय मैदान:-
- पश्चिमी घाट तथा अरब सागर के मध्य स्थित मैदान हैं।
- पश्चिमी तटीय मैदान के तीन भाग हैं।
- उत्तरी भाग को कोंकण, मध्य भाग को कन्नड़ तथा दक्षिणी भाग को मालाबार कहते है।
- पश्चिमी तटीय मैदान कम चौड़ा है।
पूर्वी तटीय मैदान:-
- पूर्वी घाट से बंगाल की खाड़ी के मध्य स्थित मैदान हैं।
- पूर्वी मैदान दो भागो में विभाजित है उत्तरी भाग को सिर्सर तथा दक्षिणी भाग को कोरोमंडल तट के नाम से जाना जाता है।
- यह मैदान विस्तृत है।
भारतीय मरुस्थल की विशेषताएँ:-
- इस क्षेत्र में वनस्पति बहुत कम है।
- इस क्षेत्र में 150 मि.मी. के कम वार्षिक वर्षा होती है।
- इस क्षेत्र की नदियाँ समुद्र तक कम जल होने के कारण नहीं पहुँच पाती और केवल वर्षा ऋतु में ही दिखाई देती हैं।
- बरकान (अर्धचंद्राकार बालू का टीला) इस क्षेत्र में अधिक मिलते है, लम्वत बालू के टीले भारत-पाकिस्तान की सीमा के निकट जेसलमेर में दिखाई देते है।
- लूनी इस क्षेत्र की सबसे बड़ी नदी है।
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