NCERT Solutions for Class 9 Hindi Kshitij Chapter 4 सांवले सपनों की याद Summary
इस कहानी के लेखक जाबिर हुसैन जी हैं, उन्होंने इस कहानी में सालिम अली नाम के एक प्रसिद्ध बर्ड वाचर के बारे में बताया है। वे कहते हैं कि पक्षियों के बारे में जानने का शौक रखने वाले को ही बर्डवाचर कहते हैं। सालिम अली का ज्ञान भारती पक्षियों के बारे में बहुत अद्भुत था
इस कहानी के अनुसार लेखक जाबिर हुसैन, सालिम अली की शव यात्रा जो की आखिरी यात्रा थी के बारे में बताया है। सालिम अली प्रकृति में उसी तरह मिलकर रहते थे जैसे कोई पक्षी अपना आखिरी गीत गाकर अपने प्राण त्याग देता है। फिर अनेक तमाम कोशिशों के बाद भी वह जिंदा नहीं हो सकता है। ना ही उस मरे हुए को कोई दोबारा जिंदा करना पसंद करेगा।
लेखक जाबिर हुसैन आगे कहते हैं कि सालिम अली का कहना यह था कि लोगों की सबसे बड़ी गलती है कि लोग पक्षी जंगल झरनों आदि को प्रकृति के नजरिए से ना देखकर आदमी की नजर से देखते हैं
लेखक जाबिर हुसैन आगे बताते हैं कि वृंदावन का नाम सुनकर श्री कृष्ण जी की याद खुद-ब-खुद आ जाती है। ठीक वैसे ही जैसे पक्षियों का नाम सुनते ही सलीम अली का नाम हमारे जुबान पर या दिमाग में अपने आप आ जाती है। आज भी अगर कोई वृंदावन जाए तो यमुना नदी का जल उन्हें वह पुराना इतिहास याद दिला देता है जब श्री कृष्ण ने यहां रासलीला की थी, गोपियों से शरारती की थी दूध दही खाया था मक्खन की हांडियां फोड़ी थी, दिल की धड़कन को तेज करने वाली बांसुरी जो कि उनकी सबसे प्रिय है, बजाई थी। जिससे सारा वृंदावन झूम उठता वह संगीत में हो जाता था और आज भी यमुना के उस काले पानी को देखकर ऐसा लगता है।
मानो अभी-अभी भगवान श्री कृष्ण बांसुरी बजाते हुए कहीं से आएंगे और सारे वातावरण में बांसुरी की मधुर तान बिखेर देंगे। सच में वृंदावन और कृष्ण एक दूसरे के पूरक बन गए हैं। लेखक जाबिर हुसैन आगे बताते हैं कि सालिम अली एक दुबले-पतले मरियल से व्यक्ति थें। अब उनके जीवन में 100 साल पूरे होने में कुछ समय ही बचा था। परंतु बहुत अधिक यात्राओं के कारण उनका शरीर थक चुका था और कैंसर जैसी बीमारी ने उन्हें मौत के मुंह में भेज दिया। परंतु सालिम अली अपने आखरी सांस तक विभिन्न पक्षियों की तलाश व उनकी देखरेख में लगे रहे। उनकी पत्नी तहमीना उनका बहुत ध्यान रखती थी और तहमीना उनकी सहपाठी भी रह चुकी थी। आगे लेखक यह बताते हैं कि सालिम अली के “बर्ड वाचर” बनने के पीछे एक “कहानी छुपी” हुई है।
वह कहानी यह थी कि बचपन में सालिम अली के मामा ने उन्हें उपहार में एक “एयरगन” दी थी। वह बहुत खुश थे लेकिन एक दिन रोज की तरह खेलते-खेलते उन्होंने अपनी छत पर बैठी गोरिया दिख गई। उनके मन में एक शैतानी सूझी और बिना कुछ सोचे समझे मज़े-मज़े में उन्होंने अपनी उस एयर गन से छत पर बैठी गोरैया पर निशाना साधा, और वह निशाना चुका नहीं और गौरैया को जाकर लग गया। जिससे वह घायल होकर छत से गिर पड़ी। उसे घायल अवस्था में देख सलीम अली को बहुत पछतावा हुआ और उन्होंने स्वयं उसकी देखभाल करने का निर्णय लिया। उस नीले पंखों वाली गौरैया ने सलीम अली के जीवन को ही बदल दिया।
उन्हें पक्षियों से बहुत प्यार होने लगा और वें बर्डवाचर बन गए। आगे लेखक जाबिर हुसैन यह भी बताते हैं कि इस घटना का वर्णन सालिम अली ने अपनी आत्मकथा “फॉल ऑफ ए स्पैरो” में भी किया है। आगे लेखक दर्शाते हैं कि अनुभवी सालिम अली ने तत्कालीन प्रधानमंत्री ‘चौधरी चरण सिंह’ के केरल की साइलेंट वैली को रेगिस्तान की भयानक हवा जो की धूल भरी थी उस से बचाने का निवेदन किया। सलीम अली के द्वारा बताए गए इन प्राकृतिक खतरो के बारे में जानकर चौधरी साहब अत्यधिक भावुक हो उठे। जाबिर हुसैन बताते हैं कि अब वह दोनों ही दुनिया से जा चुके हैं अब कौन है जो खतरनाक और बर्फ वाले स्थानों पर रहने वाले विभिन्न प्रकार के पक्षियों की रक्षा?
अंत में लेखक जाबिर हुसैन दर्शाते हैं कि सालिम अली पक्षियों को खोजने के विभिन्न तरीके अपनाते रहते। उनका प्रकृति अनुभव विशाल सागर के समान था। वे प्राकृतिक सौंदर्य से युक्त जीवन का प्रतिबिंब थे।
लेकिन अब सालिम अली नहीं रहे तथा उनको जानने वाले सभी पक्षी प्रेमी और अन्य लोग यही सोच रहे थे। कि सालिम अली अपनी अंतिम यात्रा पर नहीं बल्कि पक्षियों की खोज में जा रहे हैं और जल्द ही लौट भी आएंगे। वे सभी लोग तो आब भी यही चाहते हैं कि सालिम अली उन सबके बीच वापस आ जाएं।
ye chapter hota hai pata ho toh unpad logo
Bc bura ch da diya
Kuta sala pura ch dadiya