रैदास के पद अर्थ Class 9

व्याख्या : Raidas ke pad Explanation Class 9

अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी।
प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अंग-अंग बास समानी।।
प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितवत चंद चकोरा।
प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरै दिन राती।।
प्रभु जी, तुम मोती हम धागा, जैसे सोनहिं मिलत सुहागा।
प्रभु जी, तुम स्वामी हम दासा, ऐसी भक्ति करै रैदासा।।

अर्थ: प्रभु! मेरे मन में जो आपके नाम की रट लग गई है, वह कैसे छूट सकती है? अब मै आपका परम भक्त हो गया हूँ। जिस तरह चंदन के संपर्क में रहने से पानी में उसकी सुगंध फैल जाती है, उसी प्रकार मेरे तन मन में आपके प्रेम की सुगंध व्याप्त हो गई है। अगर आप आकाश में छाए काले बादल के समान हो, तो मैं जंगल में नाचने वाला मोर हूँ। जैसे बरसात में उमड़ते बादलों को देखकर मोर खुशी से नाचता है, उसी प्रकार मैं आपके दर्शन को पा कर खुशी से मुग्ध हो रहा हूँ। और जैसे चकोर पक्षी सदा चंद्रमा की ओर ताकता रहता है उसी भाँति मैं भी सदा आपके प्रेम को पाने के लिए तरसता रहता हूँ। हे प्रभु! अगर आप दीपक हो तो मैं उस दिए की बाती, जो सदा आपके प्रेम में जलता है। और प्रभु आप मोती हो तो मैं उसमें पिरोया हुआ धागा हूँ। आपका और मेरा मिलन सोने और सुहागे के मिलन के समान पवित्र है। जैसे सुहागे के संपर्क से सोना शुद्ध हो जाता है, उसी तरह मैं आपके संपर्क से शुद्ध हो जाता हूँ। हे प्रभु! आप स्वामी हो और मैं आपका दास हूँ।

ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै।
गरीब निवाजु गुसाईआ मेटा माथै छत्रु धरै।।
जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै।
नीचउ ऊच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै।।
नामदेव कबीरू तिलोचनु सधना सैनु तरै।
कहि रविदासु सुनहु रे संतहु हरिजीउ ते सभै सरै॥

अर्थ: हे प्रभु! आपके बिना कौन कृपा करने वाला है अर्थात कोई नहीं। आप गरीब तथा दिन-दुखियों पर दया करने वाले हैं। आप ही ऐसे कृपालु स्वामी हैं जो मुझ जैसे अछूत और नीच के माथे पर राजाओं जैसा छत्र रख दिया। आपने मुझे राजाओं जैसा सम्मान प्रदान किया है। मैं तो अभागा हूँ। मुझ पर आपकी असीम कृपा हुई है। हे स्वामी आपने मुझ जैसे नीच प्राणी को इतना उच्च सम्मान प्रदान किया है। आपकी दया से कबीर जैसे जुलाहे, त्रिलोचन जैसे सामान्य, सधना जैसे कसाई और सैन जैसे नाई संसार से तर गए। उन्हें ज्ञान प्राप्त हो गया। हे संतों, सुनो! हरि जी सब कुछ काटने में समर्थ हैं। उनके लिए कुछ भी असाध्य नहीं है।

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पाठ : 9 पद – कवि परिचय

इस कविता के कवि है रैदास। रैदास नाम से विख्यात संत रविदास का जन्म सन् 1388 और निर्वाण सन् 1518 में बनारस में हुआ, ऐसा माना जाता है। इनकी ख्याति से प्रभावित होकर सिकंदर लोदी ने इन्हें दिल्ली आने का निमंत्रण भेजा था। मध्ययुगीन साधकों में रैदास का विशिष्ट स्थान है। कबीर की तरह रैदास भी संत कोटि के कवियों में गिने जाते हैं। मूर्तिपूजा, तीर्थयात्रा जैसे दिखावों में रैदास का ज़रा भी विश्वास न था। वह व्यक्ति की आंतरिक भावनाओं और आपसी भाईचारे को ही सच्चा धर्म मानते थे।

रैदास ने अपनी काव्य-रचनाओं में सरल, व्यवहारिक ब्रजभाषा का प्रयोग किया है, जिसमें अवधी, राजस्थानी, खड़ी बोली और उर्दू-फारसी के शब्दों का भी मिश्रण है। रैदास को उपमा और रूपक अलंकार विशेष प्रिय रहे हैं। सीधे-सादे पदों में संत कवि ने हृदय के भाव बड़ी सफ़ाई से प्रकट किए हैं। इनका आत्मनिवेदन, दैन्य भाव और सहज भक्ति पाठक के हृदय को उद्वेलित करते हैं। रैदास के चालीस पद सिखों के पवित्र धर्मग्रंथ ‘गुरुग्रंथ साहब’ में भी सम्मिलित हैं।

यहाँ रैदास के दो पद लिए गए हैं। पहले पद ‘प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी’ में कवि अपने आराध्य को याद करते हुए उनसे अपनी तुलना करता है। उसका प्रभु बाहर कहीं किसी मंदिर या मस्ज़िद में नहीं विराजता वरन् उसके अपने अंतस में सदा विद्यमान रहता है। यही नहीं, वह हर हाल में, हर काल में उससे श्रेष्ठ और सर्वगुण संपन्न है। इसीलिए तो कवि को उन जैसा बनने की प्रेरणा मिलती है।

दूसरे पद में भगवान की अपार उदारता, कृपा और उनके समदर्शी स्वभाव का वर्णन है। रैदास कहते हैं कि भगवान ने तथाकथित निम्न कुल के भक्तों को भी सहज-भाव से अपनाया है और उन्हें लोक में सम्माननीय स्थान दिया है।

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